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सोमवार, 21 जनवरी 2019

Srimad Bhagvad Gita in hindi हरि ॐ तत्सत १६-३०(अध्याय -7)

Srimad Bhagvad Gita in hindi

Srimad Bhagvad Gita in hindi

१६-चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।
१७-तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।
१८-उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्‌।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्‌।
१९-बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।
२०-कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया।
२१-यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्‌।
२२-स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्‌।
२३-अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि।
२४-अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्‌।
२५-नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्‌।
२६-वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।
२७-इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप।
२८-येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्‌।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः।
२९-जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम्‌।
३०-साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः।

  हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी- ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझको भजते हैं।
  उनमें नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है क्योंकि मुझको तत्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है।
  ये सभी उदार हैं, कीन्तु ज्ञानी तो साक्षात्‌ मेरा स्वरूप ही है- ऐसा मेरा मत है क्योंकि वह मद्गत मन-बुद्धिवाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम गतिस्वरूप मुझमें ही अच्छी प्रकार स्थित है।
  बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही हैं- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है।
  उन भोगों की कामना के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं।
  जो सकाम भक्त जिन देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ।
  वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए उन इच्छित भोगों को निःसंदेह प्राप्त करता है।
  परन्तु उस अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।
  बुद्धि-हीन पुरुष, मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्मकर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं।
  अपनी योगमाया से छिपा मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिए यह अज्ञानी जनसमुदाय मुझ जन्मरहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है।
  हे अर्जुन! पूर्व में व्यतीत हुए तथा वर्तमान में स्थित और आगे होने वाले सब भूतों को मैं जानता हूँ, परन्तु मुझको कोई भी श्रद्धा-भक्तिरहित पुरुष नहीं जानता।
  हे भरतवंशी अर्जुन! संसार में इच्छा और द्वेष से जो उत्पन्न सुख-दुःखादि द्वंद्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं।
  परन्तु निष्काम भाव से श्रेष्ठ कर्मों का आचरण करने वाले जिन पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है, वे राग-द्वेषजनित द्वन्द्व रूप मोह से मुक्त दृढ़निश्चयी भक्त मुझको सब प्रकार से भजते हैं।
  जो मेरे शरण होकर जरा, मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं।
  जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव सहित तथा अधियज्ञ सहित मुझे अन्तकाल में भी जानते हैं, वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे जानते हैं अर्थात प्राप्त हो जाते हैं।

 परम ब्रह्मा परमात्मा के अनुसार ज्ञानी वह है जो परमात्मा को तत्व से जान लिया है। जो मनुष्य यह अच्छी तरह समझ गया है के परमात्मा एक है, वह अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अलग अलग देवी देवताओं को नहीं भजता है।
   भगवान वासुदेव के अनुसार वह अज्ञानी है जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अलग अलग देवी देवताओं को भजता है अर्थात पूजता है। अपनी इच्छाओं के अनुसार जो जिस देवी देवता को पूजते हैं वह अपनी इच्छाओं की प्राप्ति तो कर लेते हैं मगर जो परम ब्रह्म परमात्मा को अंतरात्मा से भजते हैं वह परम धाम को प्राप्त होते है।
परम ब्रह्म परमात्मा एक है।  वह ना कभी जन्म लेते हैं ना मृत्यु को प्राप्त होते है।

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