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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

Bhagvad gita in hindi हरि ॐ तत्सत २०-२५(अध्याय -1)

Read Bhagwat Geeta In Hindi


२०-अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्‌ कपिध्वजः।
     प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।

२१-हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।
     सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।


हे राजन्‌! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने, मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-संबंधियों को देखकर, उस समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा- हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए।

२२-यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌।
    कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे।

और जब तक कि मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख न लूँ कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खड़ा रखिए।

२३-योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
    धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।

दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आए हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा।



२४-एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
   सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्‌।

२५-भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्‌।

    उवाच पार्थ पश्यैतान्‌ समवेतान्‌ कुरूनिति।

संजय बोले- हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा कहे अनुसार महाराज श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिए जुटे हुए इन कौरवों को देख।

   दोनो सेनाओं की निरीक्षण करने के लिए अर्जुन ने अपने रथ को दोनों सेनाओं की बीच में लेकर खड़ा किया ताकि दोनों सेना का निरीक्षण कर सके। वहां से वह देखना चाहता था कि  मुझे किस-किस से लड़ना है और कैसे लड़ना है। 

   किसी भी काम को सही ढंग से करने के लिए उसीकी गहराई में जाना चाहिए तभी हम समझ सकते हैं हमको क्या करना है और कैसे करना है तभी हम अपने काम को सही ढंग से कर सकते हैं और अपने काम में सफल हो सकते हैं।


   

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