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शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

Bhagvad gita in hindi हरि ॐ तत्सत ४ -९(अध्याय -2)

Read Bhagwat Geeta In Hindi


४-कथं भीष्ममहं सङ्‍ख्ये द्रोणं च मधुसूदन।
  इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।
५-गुरूनहत्वा हि महानुभावाञ्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके।
  हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुंजीय भोगान्‌ रुधिरप्रदिग्धान्‌।
६-न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयोयद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः।
  यानेव हत्वा न जिजीविषामस्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।
  ७-कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
   यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्‌।
८-न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्‌।
  अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धंराज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्‌।
९-एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।
  न योत्स्य इतिगोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।
अर्जुन बोले- हे मधुसूदन! रणभूमि में मैं किस प्रकार बाणों से भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के विरुद्ध लड़ूँगा? क्योंकि वे दोनों ही पूजनीय हैं।
  इसलिए इन गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ क्योंकि ईन गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों ही तो भोगूँगा।
  हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से कौन-सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या वे जीतेंगे। और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे हमारे ही आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं।
   कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हैं, वही मेरे लिए कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ, आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिए।
  क्योंकि भूमि में निष्कण्टक तथा धन-धान्य सम्पन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपने को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके।
  संजय बोले- हे राजन्‌! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन, अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर, श्री गोविंद भगवान्‌ से 'युद्ध नहीं करूँगा' यह स्पष्ट कहकर चुप हो गए।


 कभी कभी किसी काम को करते वक्त हम द्वंद में पड़ जाते हैं के यह काम करना  सही है या गलत है।
 कुछ काम ऐसे होते हैं जो करना हमें गलत तो लगता है  लेकिन वह सही होता है और कल्याणकारी होता है।
 ऐसी स्थिति में हम  दूसरों की सलाह लेना पसंद करते हैं।
 लेकिन सलाह उस व्यक्ति से लेना चाहिए जो आपकी हित के बारे में सोचता हो और समाज की कल्याण के बारे में  सोचता हो।
  जैसे अर्जुन ने श्री कृष्ण से ऐसे घड़ी में पूछा था की क्या करना मेरे लिए श्रेष्ठ है और  कल्याणकारी है।

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