विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः।
संजय बोले- करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा।
२-कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।
३-क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।
श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस समय यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है,न ही स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है।
इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को न प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जाओ।
किसी ऐसी चीज की मोह में बंध कर, जो आपकी सफलता के राहों में बाधा प्राप्त कर रहा हो, और अपने कर्तव्य से मुकर जाना यह एक नपुंसकता का ही तो लक्षण है।
किसी ऐसी चीज की मोह में बंध कर, जो आपकी सफलता के राहों में बाधा प्राप्त कर रहा हो, और अपने कर्तव्य से मुकर जाना यह एक नपुंसकता का ही तो लक्षण है।
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